अंजान राहों में कुछ ख़ास है
बारिश कि बूंदों में तेरा साज़ है
टिप -टिप बरसता होठों से नीचे सरकता
उस पानी को भी तेरी प्यास है
घड़-घडाता बादल सून ज़रा कुछ कहता है
कोई तूझे कहीं बड़ी शिद्दत से पुकारता है
मेरे इंतज़ार कि अब और न ले इम्तिहाँ
आ भी जा अब क्यूँ इन बाँहों को तरसाता है
ये तेज़ हवाएँ आज तन को ऐसे लिपट गई
बंद नैनों में जेसे तेरी परछाई समा गई
तेरी आहट से धड़कने बढ़ने लगी
जुल्फों से खेलती तेरी उंगलियाँ पलकें झूका गई
पहाड़ों से टकराकर जेसे गूंजती हैं लेहरें
तेरे स्पर्श को वेसे महसूस करती हैं साँसें
डूब जाना चाहती हूँ उनकि आँखों में
समुंदर से भी गेहरी हैं वो निघाहें
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