Friday 12 April 2013

वो बेपनाह मोहब्बत उसकी

क्यूँ हमें उनसे मोहब्बत नहीं कराता खुदा , जो सिर्फ हमें है चाहता ?
उसने हमें चाहा था कभी 
हम चाहकर भी उसे चाह न सके कभी 
इकरार-ए -मोहब्बत की जब उसने 
इनकार कर गए क्योंकि वो चाहत ही न थी उससे कभी
भरी मेहफिल में बेवफा कह गया वो हमें
वफ़ा निभाकर भी गुन्हेगार साबित कर गया वो हमें ।  

तकरार ही न होती कभी 
इश्क कि तालिब न की होती उसने अगर कभी
उस अटूट रिश्ते की अनचाही हालत न होती 
उस पल अगर तुम्हारे अश्कों की बरसात न होती
उम्रभर तुम्हारा हाथ नहीं थाम सकते मालूम था तुम्हे
फिर क्यूँ अंजानो की तरह वो बेपनाह प्यार कर गया हमें । 

क्यूँ उम्मीद का दीप जलाये बैठा है वो आज भी 
क्यूँ अपनों के बीच अकेला है वो आज भी 
उस आज़ाद पंछी की क्यूँ थम सी गई है जिंदगी 
वो खिलखिलाता चेहरा , क्यूँ गुमसुम हो गई मुस्कान उसकी
उसी दीप की अग्नि में तड़पता है वो आज भी 
"या खुदा ना जला अपनी मोहब्बत में उसे इतना "
            इस  दोस्त की आँखों से छलकता  है वो आज भी 

मैंने उसे एक दिन कहा ,
"मानोगे मेरी एक सलाह माना होगा अगर दोस्त मुझे कभी ,
बढ़ जाओ जिंदगी में आगे वक़्त है अब भी "
मुस्कुराया वो अरसों बाद और कहने लगा ,
"जो थाम लूँ अगर साथ अंजना न चाह कर भी ,
रहेगा तूही सदा मेरा इश्क बनकर इस दिल में तब  भी "
न मिलें उस पल बाद हम-तुम कभी 
जब भी आता है उस पल का ख़याल,
          थम सी जाती है जिंदगी मेरी आज भी । 


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